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नारी तुम क्या हो?...

नारी तुम क्या हो, देवी या दासी ?

हर्ष या मन की उदासी!

तुम जननी हो, शक्ति स्वरूपा हो

हो वात्सल्य की मूर्ति

भगवन क्या है, क्यों हैं और कैसा है ?

कैसे होती इस जिज्ञासा पूर्ति, अगर समाज में न होती माँ की मूर्ति

जो शांत है, शुभ आशीष है, मंगल कामना है और है निर्मलमन!

तुम संगीनी हो, प्रेमिका हो, जीवन का आधार

तुम ही हो बड़ी बहन और माँ का प्यार

कुछ बुद्धिजीवी कहते हैं तुम रहस्य हो।

पर मुझ तो तुम सृष्टि नजर आती हो,

आधी नहीं पूरी नजर आती हो!

तुम हो इस सृष्टि की रचनाकार, तुम्हरे बिन मचेगा हाहाकार...

फिर भी मन में हैं बहुत से सवाल,

" तुम जो हो , जैसी हो...

ये समाज तुम्हे वैसा क्यों नहीं स्वीकारता"

क्यों नहीं तुम्हे किसी ख़ास तमगे की बजाये आम कहकर पुकारता ?

नारी तुम क्या हो...
देवी या दासी ?

संजीव कुमार गुप्ता

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