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Showing posts from May, 2020

बुरा है सपनों का मर जाना...

  युवा भारत में … सबसे बुरा है, सपनों का मर जाना सरकार की ओर से देश में 66 दिनों की तालाबांदी ने कईयों के सपनों को तोड़ा है। युवा भारत में आमजन के लिए अवसरों का छीनना, करीब 20 करोड़ लोगों का बेरोजगार होना। सैलरी में कटौती। परिवार के मुखिया पर बच्चों को पढाने, पालने की जिम्मेदारी और उनके भविष्य को लेकर संजोए सपनों का टूटना … ऐसे में सवाल एक ही है क्या सरकार इसलिए बनती है कि वह सपनों को तोड़े या देश को खड़ा करने के साथ देश के हर अंतिम व्यक्ति को उंची उडान भरने के लिए बेहतर अवसर प्रदान कराए। यही सवाल उन बिजनेसमैन या कंपनियों से है जो लोगों को बेहतर भविष्य के सपने दिखाते हैं। ऐसे संकट के क्षण में इन कंपनियों को कर्मचारियों को पूरी नहीं तो आधी-पौनी रोटी का भरोसा दिलाते हुए संस्थान को खड़ा करने के साथ कर्मचारियों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं। यही बेहतर प्रबंधन और प्रगतिशील कंपनी के सूचक हैं। सबसे बुरा है सपनों का टूटना : देश में लोगों की जॉब जाने से उनके सपने टूटेंगे तो देश वासियों में हताश आएगी। जिससे देश आर्थिक प्रगति की बजाए गर्त की ओर जाएगा। सरकार और

सरकारें : अब... कोरोना के साथ जीना होगा

सरकारी तंत्र के भरोसे बैठे जनतंत्र को अब कोरोना के साथ जीना होगा : सरकार को टैक्स चाहिए इसलिए वर्क फ्रॉमहोम नहीं, कुछ वर्क करें ( … क्योंकि लॉकडाउन में करोड़ों बेरोजगार हुए हैं) देश में कोरोना की महामारी फैली है। सरकारी लॉकडाउन के 60 दिन पूरे हुए। मई खत्म होने में 6 दिन शेष हैं। सरकार की बात मानकर जो लोग घरों में बैठे हैं। बेशक वह संक्रमण से बचे हैं या नहीं ये उन्हें भी नहीं पता। क्योंकि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 60 दिनों में अभी कोरोना टेस्टिंग का आंकड़ा 30 लाख तक नहीं पहुंचा है। जनतंत्र में आक्रोश क्यों : ऐसे लोग जो सरकार चुनते हैं और वोट देते हैं। घर बनाते हैं, फैक्ट्रियां चलाते हैं, दफ्तरों में काम करते हैं और देश के निर्माण में चंद सिक्कों के लिए हर महीने की निश्चित तारीख को वेतन का इंतजार करते हैं। उन्हें इस लॉकडाउन में क्या मिला? पुलिस के डंडे, चिलचिलाती धूप में जलती धरती पर नंगे पांव परिवार के साथ राज्य से पलायन, सैलेरी में कटौती या फिर नौकरी गंवाना।   पैदल घर जाने वालों पर डंडा वर्षा, उड़कर आने वालों पर पुष्प वर्षा :   आमजन में आक्रोश इस बात को लेकर भी है कि लॉकडाउन

लॉकडाउन का डिजिटल भारत

लॉकडाउन का डिजिटल भारत : देश में वर्चुअल पढ़ाई  और बढ़ती बेरोजगारी काफी दिन से सोचा समझा और अब लिख रहा हूं. मोदी सरकार आने के साथ ही डिजिटल इंडिया का नारा हमें मिला. इस पर काम भी शुरू हुआ. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बातें की जाने लगी. पढ़ाई में वर्चुअल क्लासेज की बातें की जाने लगी. अब लॉक डाउन आ गया है. जिसमें डिजिटल इंडिया वर्चुअल क्लासेज को ऑनलाइन क्लासेज के प्रारूप में बदलकर  मोबाइल से घर-घर तक, गूगल स्काइप, जूम क्लासेज , व्हाट्सएप और यूट्यूब के माध्यम से छात्रों के बीच पहुंचाया जा रहा है. जिसका श्रेय डिजिटल इंडिया को जाता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस डिजिटल इंडिया में जहां हमारा देश अभी भी नरेगा जैसी व्यवस्था पर चल रहा है, वहां कितने लोगों को इस वर्चुअल प्लेटफार्म पर रोजगार मिलेगा और कितने लोग इस तालाबंदी में बेरोजगार होंगे. सभी सरकारों की सभी योजनाओं को साधुवाद, सवाल फिर 1 युवाओं के लिए अवसर कहां है? कुछ सुझाव और समाधान मन में हैं:  1. सरकार आईटीआई में टेक्निकल शिक्षा देती है और आईआईटी में इंजीनियर बनाती है : इन दोनों के मेल से नए कारखाने और यूनिट लगाई जाएं तो देश के युवा