युवा भारत में … सबसे बुरा है, सपनों का मर जाना सरकार की ओर से देश में 66 दिनों की तालाबांदी ने कईयों के सपनों को तोड़ा है। युवा भारत में आमजन के लिए अवसरों का छीनना, करीब 20 करोड़ लोगों का बेरोजगार होना। सैलरी में कटौती। परिवार के मुखिया पर बच्चों को पढाने, पालने की जिम्मेदारी और उनके भविष्य को लेकर संजोए सपनों का टूटना … ऐसे में सवाल एक ही है क्या सरकार इसलिए बनती है कि वह सपनों को तोड़े या देश को खड़ा करने के साथ देश के हर अंतिम व्यक्ति को उंची उडान भरने के लिए बेहतर अवसर प्रदान कराए। यही सवाल उन बिजनेसमैन या कंपनियों से है जो लोगों को बेहतर भविष्य के सपने दिखाते हैं। ऐसे संकट के क्षण में इन कंपनियों को कर्मचारियों को पूरी नहीं तो आधी-पौनी रोटी का भरोसा दिलाते हुए संस्थान को खड़ा करने के साथ कर्मचारियों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं। यही बेहतर प्रबंधन और प्रगतिशील कंपनी के सूचक हैं। सबसे बुरा है सपनों का टूटना : देश में लोगों की जॉब जाने से उनके सपने टूटेंगे तो देश वासियों में हताश आएगी। जिससे देश आर्थिक प्रगति की बजाए गर्त की ओर जाएगा। सरकार...