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साक्षरता अर्थ एवं योजनाएं !

साक्षरता अर्थ एवं योजनाएं ! (08 सितंबर को अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर विशेष) क्या हम सचमुच साक्षर हैं? क्या जातिवाद और धार्मिक मुद्दे हमारे लिए गौण हो चुके हैं, हमारे देश का शैक्षिक ढांचा एवं नीतियां कितनी कारगर साबित हुई, बिना ढांचागत विकास के विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन से कहीं उच्चशिक्षा में डिग्रियों की खरीद-फिरोख्त तो शुरू नहीं हो जाएगी? ऐसे ही तमाम सवालों के बीच... हम 08 सितंबर को अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाएंगे, भारत को आजाद हुए 63 साल हो गए, चीन व साउथ अफ्रीका ऐसे देश हैं जिन्हें भारत के बाद स्वतंत्रता मिली, किंतु उन्नति की गति में भारत से तेज क्यों? भारत में साक्षरता दर बढी किंतु उस अनुपात में जीवन की गुणवत्ता का विकास क्यों नहीं हुआ? मानवीय विकास सूचकांक के आंकडे बेशक स्वर्णिम नजर आते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि किसान यहां आत्महत्या करते हैं और जातिवाद व मंदिर-मस्जिद जैसे घार्मिक मुद्दों पर आज भी यहां चुनाव लडे और जीते जाते हैं। जहां एक ओर हम प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ करने की बात कर रहे हैं, वहीं उच्च शिक्षा में विदेशी विश्वविद्यालयों को आमंत्रण देकर कहीं देश म

लॉकडाउन का डिजिटल भारत

लॉकडाउन का डिजिटल भारत : देश में वर्चुअल पढ़ाई  और बढ़ती बेरोजगारी काफी दिन से सोचा समझा और अब लिख रहा हूं. मोदी सरकार आने के साथ ही डिजिटल इंडिया का नारा हमें मिला. इस पर काम भी शुरू हुआ. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बातें की जाने लगी. पढ़ाई में वर्चुअल क्लासेज की बातें की जाने लगी. अब लॉक डाउन आ गया है. जिसमें डिजिटल इंडिया वर्चुअल क्लासेज को ऑनलाइन क्लासेज के प्रारूप में बदलकर  मोबाइल से घर-घर तक, गूगल स्काइप, जूम क्लासेज , व्हाट्सएप और यूट्यूब के माध्यम से छात्रों के बीच पहुंचाया जा रहा है. जिसका श्रेय डिजिटल इंडिया को जाता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस डिजिटल इंडिया में जहां हमारा देश अभी भी नरेगा जैसी व्यवस्था पर चल रहा है, वहां कितने लोगों को इस वर्चुअल प्लेटफार्म पर रोजगार मिलेगा और कितने लोग इस तालाबंदी में बेरोजगार होंगे. सभी सरकारों की सभी योजनाओं को साधुवाद, सवाल फिर 1 युवाओं के लिए अवसर कहां है? कुछ सुझाव और समाधान मन में हैं:  1. सरकार आईटीआई में टेक्निकल शिक्षा देती है और आईआईटी में इंजीनियर बनाती है : इन दोनों के मेल से नए कारखाने और यूनिट लगाई जाएं तो देश के युवा

सरकारें : अब... कोरोना के साथ जीना होगा

सरकारी तंत्र के भरोसे बैठे जनतंत्र को अब कोरोना के साथ जीना होगा : सरकार को टैक्स चाहिए इसलिए वर्क फ्रॉमहोम नहीं, कुछ वर्क करें ( … क्योंकि लॉकडाउन में करोड़ों बेरोजगार हुए हैं) देश में कोरोना की महामारी फैली है। सरकारी लॉकडाउन के 60 दिन पूरे हुए। मई खत्म होने में 6 दिन शेष हैं। सरकार की बात मानकर जो लोग घरों में बैठे हैं। बेशक वह संक्रमण से बचे हैं या नहीं ये उन्हें भी नहीं पता। क्योंकि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 60 दिनों में अभी कोरोना टेस्टिंग का आंकड़ा 30 लाख तक नहीं पहुंचा है। जनतंत्र में आक्रोश क्यों : ऐसे लोग जो सरकार चुनते हैं और वोट देते हैं। घर बनाते हैं, फैक्ट्रियां चलाते हैं, दफ्तरों में काम करते हैं और देश के निर्माण में चंद सिक्कों के लिए हर महीने की निश्चित तारीख को वेतन का इंतजार करते हैं। उन्हें इस लॉकडाउन में क्या मिला? पुलिस के डंडे, चिलचिलाती धूप में जलती धरती पर नंगे पांव परिवार के साथ राज्य से पलायन, सैलेरी में कटौती या फिर नौकरी गंवाना।   पैदल घर जाने वालों पर डंडा वर्षा, उड़कर आने वालों पर पुष्प वर्षा :   आमजन में आक्रोश इस बात को लेकर भी है कि लॉकडाउन